शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

वरदान

नहीं जाता माँ मैं वैष्णव देवी
क्योंकि वैष्णव सबरूप मेरी जन्मदाती मेरी माँ मेरे घर पे है,
नहीं जाता मैं हरिद्वार कांवड़ लेने
क्योंकि शंकर सबरूप मेरे पिता मेरे घर पे हैं,
नहीं जाता मैं गुरूद्वारे इसके लिए भी मांगता माफ़ी मैं,
क्योंकि मेरे गुरु ने जो मंत्र दिया उसका सिमरन ही काफी है,
तेरे दर पे झुका हूँ देना हो तो इतना मान देना
कि श्रवण कुमार की तरह माँ बाप की सेवा कर पाऊं
बस यही वरदान देना

8 टिप्‍पणियां:

दीपक 'मशाल' ने कहा…

हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है...

Amit K Sagar ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.

Dudhwa Live ने कहा…

अविभूत कर दिया आप ने भाई

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर लेख धन्यवाद|

gyaneshwaari singh ने कहा…

बहुत बड़ा सच यही है...माँ बाप सबके भगवन है

funandbliss.blogspot.com ने कहा…

शुभकामनाएं ।

संगीता पुरी ने कहा…

इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

shreesh rakesh jain ने कहा…

sundar rachna hai.saadhuwad.