गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

घर की रामायण

पहले दिन रामलीला देखने के बाद,
जब मैं घर पर आया...
तो मेरे बेटे ने कुछ इस तरह से फ़रमाया
कि पापा.... हम रामलीला में जो भी देख कर आयेंगे,
वही अपने घर पर कर के दिखायेंगे |
जैसे की आज रामजन्म हुआ है,
आप सोचिये आपके घर में भी बेटा पैदा हुआ है,
मैंने कहा ये तो ठीक है पर...
मैं राजा दशरथ नहीं बन सकता,
क्योंकि राजा दशरथ तो बड़ी हिम्मत वाले थे,
तीन तीन पत्नियाँ संभाले थे,
यहाँ तो एक भी भारी पड़ रही है !
ज़िन्दगी मुश्किल में गुज़र रही है,
कानूनी बंदिश होने के नाते से
दूसरी ला नहीं सकता,
और कहीं एक्सचेंज ऑफर ! नहीं है,
इसलिए बदलवा नहीं सकता |
दूसरे दिन बेटा बोला....
आज आप राम बनोगे
मम्मी ताड़का बनेगी,
और आपके हाथों से मरेगी
मैंने कहा तू क्या गज़ब ढा रहा है !
कैकयी को ताड़का बता रहा है ?
और तेरी जुबान बड़ी चलती है,
माँ क्या तुझे राक्षसों के खानदान की लगती है ?
आहिस्ता बोल... उसने सुन लिया
तो कोप भवन में चली जाएगी,
दो दिन भूखे रहना पड़ेगा
और बेटा खाली पेट नींद भी नहीं आएगी !
हम तो यहाँ रामायण की बात करते है,
वो महाभारत कर के दिखाएगी !
अगले दिन बेटा बोला...
बंद करो ये मुस्कुराना
आज आपको पड़ेगा वनों में जाना,
मैंने कहा चौबीस साल पहले
छोड़ कर आया था हरियाणा !
जिस तरह भगवान राम को,
माँ बाप की आज्ञा से पड़ा था
वनों में जाना उसी तर्ज़ पर,
हमारा भी तो हुआ था
दिल्ली में आना !
और उस दिन से आजतक
वनवास ही तो काट रहा हूँ !
बेटा बोला पर भगवान जी तो
जंगलों में गए थे,
यहाँ जंगल कहाँ है ?
तो मैंने कहा
किसी दिन पूरी दिल्ली घुमाऊंगा
तुम्हे दो टांगो पे चलते जानवर दिखलाऊंगा,
संवेदनाहीन जानवर, मानवताविहीन जानवर,
गर्दन और जेब काटते जानवर ,
दीमक की तरह देश को चाटते जानवर,
कानून से करते खिलवाड़ जानवर,
अबलाओं के इज्ज़त पर करते वार जानवर,
रक्षक से भक्षक बने जानवर,
गरीबों के खून से सने जानवर,
जहाँ इतने खूंखार जानवर रहते है
उसे जंगल नहीं तो क्या शहर कहते हैं ?
अगले दिन बेटा बोला
आज तो सीता को हरना पड़ेगा,
ये काम भी आपको करना पड़ेगा,
मैंने कहा ये काम मुझसे हो नहीं सकता
क्योंकि मैं एक कवि हूँ,
ना कि कोई नेता
आज रावण का काम नेता कर रहे हैं,
जनता बेचारी सीता है
उसी को हर रहे हैं |
त्रेता में तो एक रावण था
जिसे मारने के लिए,
भगवान् ने अवतार लिया
इस युग में इतने रावण हो जायेंगे
तो प्रभु किस किस को मारने आयेंगे ?
अब बंद करो ये सिलसिला
देखेंगे कल की रामलीला .....
अगले दिन बेटे ने दिखाया जोश
बोला आज आप हो जाओ बेहोश !
मैं आपका हुकम मान कर दिखाऊंगा
आपके लिए संजीवनी लाऊंगा,
मैंने कहा बेटा मैं तो उसी दिन से बेहोश हूँ
जिस दिन से होश संभाला है ....
मैंने तुम्हे बड़े चाव से बड़े लाड से पाला है,
लेकिन हर महीने फिर बेहोश हो जाता हूँ
जब तुम्हारे स्कूल की फीस भरने जाता हूँ |
अब तू जब बड़ा हो जायेगा,
अपने पैरों पर खड़ा हो जायेगा,
मेहनत और ईमानदारी रुपी संजीवनी लायेगा,
तब तेरा बाप होश में आएगा |
खैर रामलीला का आखिरी दिन आया,
सबने मिल कर रावण को जलाया,
तब मैंने बेटे को समझाया
कि सिर्फ रावण ही नहीं,
हिन्दुस्तान का हर आम आदमी जल रहा है,
कोई सब्जियों के दाम से,
कोई बिजली के बिल के झटकों से,
कोई पेट्रोल की कीमतों से,
कोई पानी के मटकों से,
कोई गैस के सिलेंडर से,
कोई आलू और चुकंदर से,
हिन्दुस्तान का हर आम आदमी
तिल तिल जल रहा है,
रावण तो जल कर
अगले साल फिर खड़ा हो जाता है,
पर आज का आम आदमी
जलता ही जाता है जलता ही जाता है .........|

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